Not known Facts About baglamukhi shabhar mantra
Not known Facts About baglamukhi shabhar mantra
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शमशान में अगर प्रयोग करना है तब गुरू मत्रं प्रथम व रकछा मत्रं तथा गूड़सठ विद्या होने पर गूड़सठ क्रम से ही प्रयोग करने पर शत्रू व समस्त शत्रुओं को घोर कष्ट का सामना करना पड़ता है यह प्रयोग शत्रुओं को नष्ट करने वाली प्रक्रिया है यह क्रिया गुरू दिक्षा के पश्चात करें व गुरू क्रम से करने पर ही विशेष फलदायी है साघक को बिना छती पहुँचाये सफल होती है।
इन दो बगला-शाबर मन्त्रों के अतिरिक्त भी एक अन्य शाबर मंत्र गुरु-प्रसाद स्वरूप हमें प्राप्त हुआ था, जिसका उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूं। इस मन्त्र का विधान यह है कि सर्वप्रथम भगवती का पूजन करके इस मन्त्र का दस हजार की संख्या में जप करने हेतु संकल्पित होना चाहिए। तदोपरान्त एक निश्चित अवधि में जप पूर्ण करके एक हजार की संख्या में इसका हवन ‘मालकांगनी’ से करना चाहिए। तदोपरान्त तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तर्पण गुड़ोदक से करें। इस प्रकार इस मन्त्र का अनुष्ठान पूर्ण होता है। फिर नित्य-प्रति एक माला इस मन्त्र की जपते रहना चाहिए। इस मन्त्र का प्रभाव भी अचूक है अतः निश्चित रूप से साधक के प्रत्येक अभीष्ट की पूर्ति होती है। मन्त्र इस प्रकार है
भावार्थ:-जिन शिव-पार्वती ने कलियुग को देखकर जगत के हित के लिए शाबर मन्त्र समूह की रचना की, जिन मंत्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप ही होता है, तथापि श्री शिवजी के प्रताप से जिनका प्रभाव प्रत्यक्ष है ।
यदि आपको इन मन्त्रों का प्रभाव देखना है तो निर्देशानुसार इनका साधन कर अभीष्ट की प्राप्ति करें। ये मन्त्र किस प्रमाणिक ग्रन्थ में हैं, यह कुछ स्पष्ट नहीं है। प्रमाण केवल यही है कि ये गुरुमुख से प्राप्त हैं। शेष जब आप इनकी साधना करेंगे तो प्राप्त होने वाला परिणाम ही इनकी प्रमाणिकता का साक्षी होगा।
व्याेँप्ताङ्गीं बगला-मुखीं त्रि-जगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये
रिपोर्जिह्वां त्रि-शूलं च, पीत-गन्धानुलेपनाम् । पीताम्बर-धरां सान्द्र-दृढ-पीन-पयोधराम् ॥
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The mantra has Bheej Appears of Baglamukhi. It prays the goddess to generate the enemies ineffective by arresting their vicious speech, ft and intelligence. After their movements are restricted, they are able to never ever act from you.
शाबर मत्रं अत्यधिक प्रभाव शाली है। क्या सटीक शत्रुओं को शांत किया जा सकता है? ज़रूर बताएं।
पीतार्णव-समासीनां, पीत-गन्धानुलेपनाम् ।
अर्थात् सुवर्ण जैसी वर्णवाली, मणि-जटित सुवर्ण के सिंहासन पर विराजमान और पीले वस्त्र पहने हुई एवं ‘वसु-पद’ (अष्ट-पद/अष्टापद) सुवर्ण के मुकुट, कण्डल, हार, बाहु-बन्धादि भूषण पहने हुई एवं अपनी दाहिनी दो भुजाओं में नीचे वैरि-जिह्वा और ऊपर गदा लिए हुईं, ऐसे ही बाएँ दोनों हाथों में ऊपर पाश और नीचे वर धारण किए हुईं, चतुर्भुजा भवानी (भगवती) को प्रणाम करता हूँ।
अर्थात् सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रोंवाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भाँति कान्ति- मय अङ्गोवाली, जिनके मणि-मय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में- १.
वन्दे स्वर्णाभ-वर्णां मणि-गण-विलसद्धेम- सिंहासनस्थाम् ।